Friday, February 17, 2012

जन-गण-मन की तीसरी ग़ज़ल

जन-गण-मन की तीसरी ग़ज़ल

बंद कमरों के लिए ताज़ा हवा लिखते हैं हम
खिड़कियाँ हों हर तरफ़ ऐसी दुआ लिखते हैं हम

आदमी को आदमी से दूर जिसने कर दिया
ऐसी साज़िश के लिए हर बद्दुआ लिखते हैं हम

जो बिछाई जा रही हैं ज़िन्दगी की राह में
उन सुरंगों से निकलता रास्ता लिखते हैं हम

रोशनी का नाम देकर आपने बाँटे हैं जो
उन अँधेरों को कुचलता हौसला लिखते हैं हम

ला सके सबको बराबर मंज़िलों के रास्ते
हर क़दम पर एक ऐसा क़ाफ़िला लिखते हैं हम

सादर
द्विजेन्द्र द्विज

2 comments:

  1. this one is nice sir all other just sadd and dpressing we want hope we wat joy we need inspiration i know u can do it
    so give us the sunshine we all r wating

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  2. बंद कमरों के लिए ताज़ा हवा लिखते हैं हम
    खिड़कियाँ हों हर तरफ़ ऐसी दुआ लिखते हैं हम

    this one should give some hope.

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