Thursday, June 3, 2010

सच्चे गीत उल्लास के

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ के ग़ज़ल संकलन जन-गण-मन पर डा० आत्मा राम (प्रख्यात समालोचक, शिक्षाविद, व्यंग्यकार,तथा पूर्व शिक्षा निदेशक हिमाचल प्रदेश)


द्विजेन्द्र ‘द्विज’ की ग़ज़लें सरल भाषा में तीखे और कारगर भाषा में सीधे तीर के समान हैं जो अपने निशाने पर निरन्तर और बहुत समय तक पहुँचती और प्रहार करती हैं. ‘जन-गण-मन’ में संग्रहीत ५६ ग़ज़लें मानों ५६ अनूठे पकवानों की महक ,रस,स्वाद से ओतप्रोत हैं. हर ग़ज़ल अपने अंदाज़ में है और आज के संसार का, उसकी गतिविधियों और सोच का सारांश प्रस्तुत करती हैं.

हास्य-व्यंग्य एक स्वस्थ तथा स्थाई उज्ज्वलता की पृष्ट -भूमि में किया गया है जिसमें न तो किसी प्रकार की दुरूहता या रिक्तता का अंशमात्र है, और न ही मज़ाक़ की शुष्कता और उदण्डता का आभास है - क्योंकि जैसे कि महात्मा मीर दाद कहते हैं - "मज़ाक़ ने मज़ाक़ उड़ाने वालों का सदा मज़ाक़ उड़ाया है." मानो कवि अपने आप और अन्य सभी को मीठी भाषा में उपदेश कर रहा हो:

"मत बातें दरबारी कर
सीधी चोट करारी कर"
इन गुणों के कारण "जन-गण-मन" की प्रत्येक ग़ज़ल को बार-बार पढ़ने को दिल करता है.एक ही लय में न होने के कारण इनमें विविधता है,अद्भुत रस है. आम आदमी केअनुभवों,उसकी आवाज़ के, उसके मन में उठते सवालों को अति सुन्दर ,सरस और सरल् भाषा में व्यक्त किया गया है .आजके ज़माने में क्या बुरा-भला हो रहा है, कैसे उसके विरुद्ध आवाज़ उठानी है,इसकी ओर संकेत करते कवि साफ़ लिखता है:

"बंद कमरों के लिए ताज़ा हवा लिखते हैं हम
खिड़कियाँ हो हर तरफ़ ऐसी दुआ लिखते हैं हम"

इसी तरह बड़ी गहरी चोट की है कवि ने :

"अँधेरे चन्द लोगों का अगर मकसद नहीं होते
यहाँ के लोग अपनेआप में सरहद नहीं होते"

इस शेर में शक्ति है, दिशा है, तीखापन है. पढ़कर व्यक्ति अपने आपको, अन्य को झंझोड़ने लगता है.

उर्दू के शब्द प्राय: प्रयुक्त किए गए हैं परन्तु उनका अपना ही महत्व है, विशेष
स्थान है. एक उदाहरण है:

"रात में क्यों वो सियाही का बनेगा वारिस
धूप हर शख़्स के क़दमों में बिछाने वाला"


‘द्विज’ की ग़ज़लें कालरिज के सिद्धान्त "श्रेष्ठतम शब्द श्रेष्ठतम स्थान पर" की याद दिलाती हैं.

‘द्विज’ का ध्येय कुछ कहना है सरल, आसान ग़ज़ल के माध्यम से. अत: यहाँ भाषा की क्लिष्टता नहीं रखी गई है. यह तो आम लोगों की बोली में उनके भाव जज़्बे, विचार उभारने तथा व्यक्त करने का सुन्दर तथा प्रभावशाली प्रयास है. हर जगह हर तरीक़े से ठगे-दले जाते आदमी को कवि कैसे जगाने का यत्न करता है ,यह देखने योग्य है:

"
हर क़दम पर ठगा गया फिर भी
तू ख़बरदार ही नहीं होता.

बेच डालेंगे वो तेरी दुनिया
तुझसे इनकार ही ही नहीं होता

जो ‘शरण’ में गुनाह करता है
वो गुनहगार ही नहीं होता

जो ख़बर ले सके सितमगर की
अब वो अख़बार ही नहीं होता"


निश्चय ही द्विजेन्द्र ‘द्विज’ की ग़ज़लें औरों की रचनाओं से बिलकुल अलग हैं, अपनेआप में अपनी पहचान हैं . सुगम, स्पष्ट और सादा भाषा में लिखी गईं ये रम्य रचनात्मक कृतियाँ आज के इतिहास का, हालात का विशुद्ध जायज़ा भी हैं और समीक्षात्मक मूल्यांकन भी . बहुत-सी पंक्तियाँ स्वत: ही स्मरण हो जाती हैं. यहाँ कोई रोमांस की नोंक-झोंक नहीं. मनोरंजन नहीं. खोखली हँसी बिखेरने की मंशा नहीं. केवल आज के मानव, जन गण मन का दर्द व्यथा बयान करने, बताने की सतत, सफल कोशिश है, इस दौर को स्पषटतया दिखाने का का श्लाघनीय प्रयत्न है. क्योंकि:

"अनगिनत मायूसियों ख़ामोशियों के दौर में
देखना ‘द्विज’ छेड़ कर कोई ग़ज़ल उल्लास की"

‘द्विज’ की ग़ज़लें वस्तुत: कई बार उर्दू की प्रसिद्ध कविता "बुलबुल की फ़रियाद" की याद दिलाती हैं, जहाँ बुलबुल पिंजरे में बंद अपने स्वतंत्रता के दिनों को याद कर फ़रियाद करते हुए कहती है:

"गाना इसे समझकर ख़ुश हों न सुनने वाले
टूटे हुए दिलों की फ़रियाद यह सदा है"

यहाँ ‘द्विज’ भी इसी लय में कहता है, अपनी कविता के बारे में:

छोड़िए भी... फिर कभी सुनना
ये बहुत लम्बी कथाएँ हैं

ये मनोरंजन नहीं करतीं
क्योंकि ये ग़ज़ले व्यथाएँ हैं"

परन्तु इन ग़ज़लों को बार-बार सुनने की, पढ़ने की, इच्छा बनी रहेगी- यह मेरा दृढ़ विश्वास है. आशा है ‘द्विज’ भविष्य में भी और भी ऐसी रचनाएँ प्रस्तुत करेगा और हमारा समाज तथा साहित्य संसार उसकी ग़ज़लों का हार्दिक स्वागत करेगा और इसे सुधारात्मक दृष्टि से भी लेगा.


‘हिमसुमन' (मई-2007) से साभार

7 comments:

  1. आपके और आपकी रचनाओं के प्रति डॉ आत्‍मा राम जी के विचार को पढकर अच्‍छा लगा .. आपको बधाई !!

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  2. श्री आत्मा राम जी के विचार पढ़ कर अच्छा लगा. मैं ५००% सहमत हूँ.

    द्विज जी की गज़लें ऐसे हैं जैसे बंद कमरे से निकले आदमी के लिए ताज़ा हवा का झोंका..जो एक दम तारो ताज़ा कर दे.

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  3. सुन्दर समीक्षा.. द्विज सर को बधाई...

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  4. "मत बातें दरबारी कर
    सीधी चोट करारी कर"
    Puaasar shaili, shabdon ka rakh rakhaav, unki bunawat evam kasawat aapke ship ko pardashi bana kar pesh kar rahi hai aur ek alag pehchan darshati hai. Badhayi

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  5. बहुत बढ़िया.डॉ आत्‍मा राम जी के विचार को पढकर अच्‍छा लगा. आभार!

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  6. aadarneey 'dwij' ji ki gazalon ke baare mein Sh Atma Ram ji ki smeeksha padh kar mn aanandit ho gayaa.... 'DWIJ' ji ko padhna har baar ek nayee anubhooti aur nayi oorjaa pradaan kartaa hai .

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