Saturday, November 8, 2008

ग़ज़लकार, समीक्षक बृज किशोर वर्मा 'शैदी'ने जन-गण-मन की समीक्षा मे लिखा है:

अँग्रेज़ी के प्राध्यापक, मारण्डा (काँगड़ा) निवासी श्री द्विजेन्द्र 'द्विज' की ५६ ग़ज़लों का यह प्रथम संग्रह 'जन-गण-मन' कई मायनों में विशिष्ट है। परिपाटी से हट कर संग्रह का शीर्षक, वैसा ही असामान्य तख़ल्लुस(उपनाम) और कवि परिचय व आत्म-कथ्य का अभाव थोड़ा चौंकाते है। वैसी ही चौंकाने वाली है ग़ज़लों की स्तरीयता, जो बाज़ार में उपलब्ध ढेरों ग़ज़ल-संग्रहों में दुर्लभ से दुर्लभ होती जा रही है। 'जन-गण-मन' को समर्पित इस संग्रह की सभी ग़ज़लें जन—गण के मन का आईना हैं। चुप्पियों का अहसास, शोर की बकवास, मन का संत्रास, समय का उपहास,चटकती आस, भटकती प्यास और इन सब के बावजूद कवि का आत्मविश्वास रचनाओं में बड़े ही प्रभावी ढंग से अभिव्यक्त हुए हैं।
नये रूपकों-मुहावरों-बिंबों का प्रयोग ताज़ा हवा के झोंकों-सी अनुभूति देता है:

'जब से काँटों की तिजारत ही फली-फूली है
कोई मिलता ही नहीं फूल खिलाने वाला'

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इस युग में हो गया है चलन 'बोनसाई' का
यारो ! किसी भी पेड़ का अब क़द न पूछिये

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एकलव्यों को रखेगा वो हमेशा ताक़ पर
पाण्डवों या कौरवों को दाखिला दे जाएगा

इस संग्रह की सभी ग़ज़लों की विशेषता यही है कि छंद में कहीं झोल नहीं है,जैसाकि अक्सर बड़े-बड़े रचनाकारों के यहाँ भी देखने को मिल जाता है। 'भाषा बहुत ही सरल किन्तु प्रभावपूर्ण है क्योंकि यह जन—गण के मन व जीवन से जुड़ी है।कवि के अपने ही शब्दों में:

जुड़ेंगी सीधे कहीं ज़िन्दगी से ये जाकर
भले ही ख़ुश्क हैं ग़ज़लें ये गुनगुनाने में।

प्रस्तुत संग्रह पठनीय ही नहीं, संग्रहणीय भी है पुस्तक में सम्मिलित ज़हीर कुरेशी व ज्ञानप्रकाशविवेक के कथन की पुष्टि ही करते हैं।

मसि-कागद(अंक—२१) [अक्तूबर-दिसंबर २००३] से साभार

2 comments:

  1. इस अनूठे गज़ल-संग्रह की कई गज़लें तो पहले ही पढ़ चुका था मैं...इस बेहतरीन समीक्षा के लिये दिल से धन्यवाद.गज़ल का साधक हूँ और सीख रहा हूँ.गज़ल-संग्रह को मंगवाने का (पोस्ट द्वारा) या शिमला-सोलन या देहरादून में कहीं उपलब्ध हों,तो बताने का कष्ट करें.कृपा होगी.ये किताब तत्काल से खरिदना चाहता हूँ.मेरा मोबाईल नंबर है-09319240519.

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  2. छंद शास्त्री पिंगल आचार्य श्री राम प्रसाद 'महरिष', ग़ज़लकार, समीक्षक श्री बृज किशोर
    वर्मा 'शैदी' एवं कवि डा० तारादत्त 'निर्विरोध' की समीक्षाएं बहुत अच्छी लगीं।
    'कविता कोश' पर आपके ग़ज़ल-संग्रह 'जन-गण-मन' की ग़ज़लें देख कर बहुत खुशी
    हुई और आज से पढ़नी शुरू कर दी हैं। इसमें अतिशयोक्ति नहीं है कि यह ग़ज़ल-संग्रह हिंदी-ग़ज़ल-साहित्य में एक विशेष स्थान रखता है।
    बधाई स्वीकार करें।
    महावीर शर्मा

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